संगठनात्मक व्यवहार
भूमिका
किसी भी संगठन में दौरान, न केवल दूसरों के व्यवहार को समझना ज़रूरी है बल्कि यह भी सुनिश्चित करना ज़रूरी है की दुसरे हमारे व्यवहार को समझें। कार्य क्षेत्र में, एक स्वस्थ परिवेश बनाये रखने के लिए, अपने आप अनुकूल ढालना ज़रूरी है, ताकि दिया गया मुद्दा हासिल हो सके। लिहाज़ा, हर ओहदेदार के लिए संगठनात्मक व्यवहार की समझ होना ज़रूरी है।
उद्देश्य
संगठनात्मक बारे में जानकारी देना है।
(क) भाग एक : परिभाषा और समझ।
(ख) भाग दो : सदस्य और संगठन सम्बन्ध।
(ग) भाग तीन : ज़रूरत।
भाग एक : परिभाषा और समझ
परिभाषा
प्रसिद्ध प्रबंधन विशेषज्ञ रोब्बिंस के अनुसार, संगठनात्मक व्यवहार का क्षेत्र है जो, सदस्यों, समूहों और संगठन के अंदर व्यवहार के प्रभाव को जांचता है ताकि, इस ज्ञान को संगठनत्मक प्रभावशीलता लाने के उद्देश्य से लागु किया जा सके।
संगठनात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व
(क) सदस्य : किसी भी संगठन के सदस्य उसके सबसे महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं. संगठन के सदस्य उसकी बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाते हैं। जितना बेहतर तालमेल होगा, संगठन उतना ही प्रभावशाली होगा।
(ख) बुनियादी ढांचा या स्ट्रक्चर : हर संगठन में ओहदेदारों के बीच में सम्बन्ध का एक बुनियादी ढांचा होता है, जिसके आधार पर वह सब अपने लिए सुनिश्चित कार्य को पूरा करते हैं.इस लिहाज़ से उन सदस्योँ में आपसी सम्बन्ध बनता है :-
एक सरकारी दफ्तर में कर्मचारी अपने अपने महकमों को सँभालते हैं, इसलिए सिर्फ एक दुसरे को पहचानते हैं, उनके बीच संस्थागत तालमेल की ज़रूरत नहीं होती ही। आयन के लेवल
लेकिन एक फुटबॉल टीम मैं हर सदस्य एक दुसरे की खूबी और कमजोरी को पहचानते हैं और उसी अनुसार टीम जीतने के लिए अपनी रणनीति तय करता है।
(ग) तकनीक या टेक्नोलॉजी : हर संगठन अपने सदस्यों से कार्य करवाने के लिए कुछ बुनियादी तकनीक का इस्तेमाल करती है। यह तकनीक उन सदस्यों को एक सूत्र में जोड़ता है एक सैनिक के ताऊ पर हमारी मुखःया तकनीकी कौशल हमारी युद्ध कला में निपुणता है। लिहाज़ा हमारी सारी प्रशिक्षण कार्रवाई इसी मुद्दे को हासिल करने पर केंद्रित होती है।
(घ) माहौल या परिस्थिति : हर संगठन की भूमिका उसके अंदर मके माहौल को तय करती है। जैसे की एक सैनिक निसंकोच होकर अपने दुश्मन को मारता है और देश तथा संगठन के प्रति अपनी जिम्मेवारी को पूरा करता है लेकिन एक डॉक्टर बिना दुश्मन या दोस्त का भेदभाव किये दोनों का इलाज करता है।
संगठनात्मक व्यवहार की समझ का दायरा
(क)सदस्य स्तर पर : सदसयगत स्तर पर संगठनात्मक व्यवहार की समझ हर नुमाइंदे के व्यवहार, नजरिया, व्यावसायिक संतुष्टि और संगठन में आगे बढ़ने की लालसा को समझने की कोशिश करता है।
(ख) समूह स्तर पर : समूह में संगठनात्मक व्यवहार सदस्यों के बीच में लाभ-हानि के हिसाब से तालमेल, मतभेद, सहयोग और समझौता के कारणों को समझने की कोशिश करता है। वह यह भी जानने की कोशिश करता है की सदस्यों के व्यवहार अपने स्वार्थ को पूरा ककरने के लिए था या संगठन के उद्देश्य को हासिल करने के लिए था।
(ग) संगठन में : संगठन में संगठनात्मक व्यवहार की समझ कार्य क्षेत्र में, सकारात्मक माहौल, निष्पक्ष व्यवहार और टीमवर्क की मानसिकता के विकास के लिए होता है।
भाग दो : सदस्य और संगठन सम्बन्ध
(क) सदस्य की संगठन से अपेक्षा
संगठन में कार्य करने के लिए उसे स्वस्थ माहौल मिले
संगठन में, चाहे कोई भी हालत हो, उसका स्थान सुरक्षित रहे
उसे अपनी पसंद का काम मिले और संगठन के व्यवहार में अपनापन हो
सबके साथ निष्पक्ष व्यवाहर हो
ओहदेदार/ बड़े अधिकारी उसकी भूमिका उसकी इज़्ज़त करें
निर्णय लेने की करवाई में उसकी सहभागिता हो
सबके लिए प्रगती और व्यावसायिक उन्नति का सामान अवसर हो
सीनियर्स का समस्याओँ के प्रति तदानुभूति हो
(ख) संगठन की सदस्यों सेअपेक्षा
संगठन के उद्द्व्श्य को हासिल करने में लगा रहे
संगठन के लिए लगातार जी तोड़ मेहनत करता रहे
हर सदस्य नियमानुसार दिए गए कार्य को करे व्यवहार करे
जिसका जैसा कार्य , उसके प्रति वैसा ही व्यवहार
ओहदेदार/ बड़े पदाधिकारी के अच्छे व्यवहार का लाभ उठाने की कोशिश न करे
हर सदस्य संगठन के निर्णेय का निर्विरोध सम्मान करे
कुशलता को पुरस्कार
नुमाइंदों में संगठन और ओहदेदारों के प्रति सम्मान और जवाबदारी की भावना होनी चाहिए
भाग तीन : ज़रूरत
संगठनात्मक व्यवहार की समझ जरुरी है क्योंकि
(क) संगठन के हर नुमाइंदे के स्थान के महत्व को समझने में मदद मिलता है।
(ख़) हर सदस्य के व्यावसायिक संतुष्टी और उन्नति के लिए आवश्यक तत्वों की समझ देता है।
(ग) संगठन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए हर सदस्य की भागीदारी बनाने में मदद करता है।
(घ) दिए गए हर कार्य को बखूबी अंजाम देने की क़ाबलियत बढ़ाता है।
(च) आपसी सहयोग और तालमेल बढ़ाता है और मतभेद काम करता है।
(छ) लगातार अच्छा परिणाम हासिल करने के लियए सभी सदस्यों को प्रेरित करता है।
साराँश
मौजूदा समय में मानव संसाधान प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। नुमाइंदे के व्यवहार को समझने के लिए और हर्र एक नुमाईन्दे की योग्यता और क्षमता उठाने के लिए किसी भी जूनियर लीडर के कारगर होने के लिए निहायत ही ज़रूरी है। लिहाज़ा इस मुद्दे को हासिल करने में , संगठनात्मक व्यवहार की समझ किसी भी जूनियर लडेर क लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।
(ख) बुनियादी ढांचा या स्ट्रक्चर : हर संगठन में ओहदेदारों के बीच में सम्बन्ध का एक बुनियादी ढांचा होता है, जिसके आधार पर वह सब अपने लिए सुनिश्चित कार्य को पूरा करते हैं.इस लिहाज़ से उन सदस्योँ में आपसी सम्बन्ध बनता है :-
एक सरकारी दफ्तर में कर्मचारी अपने अपने महकमों को सँभालते हैं, इसलिए सिर्फ एक दुसरे को पहचानते हैं, उनके बीच संस्थागत तालमेल की ज़रूरत नहीं होती ही। आयन के लेवल
लेकिन एक फुटबॉल टीम मैं हर सदस्य एक दुसरे की खूबी और कमजोरी को पहचानते हैं और उसी अनुसार टीम जीतने के लिए अपनी रणनीति तय करता है।
(ग) तकनीक या टेक्नोलॉजी : हर संगठन अपने सदस्यों से कार्य करवाने के लिए कुछ बुनियादी तकनीक का इस्तेमाल करती है। यह तकनीक उन सदस्यों को एक सूत्र में जोड़ता है एक सैनिक के ताऊ पर हमारी मुखःया तकनीकी कौशल हमारी युद्ध कला में निपुणता है। लिहाज़ा हमारी सारी प्रशिक्षण कार्रवाई इसी मुद्दे को हासिल करने पर केंद्रित होती है।
(घ) माहौल या परिस्थिति : हर संगठन की भूमिका उसके अंदर मके माहौल को तय करती है। जैसे की एक सैनिक निसंकोच होकर अपने दुश्मन को मारता है और देश तथा संगठन के प्रति अपनी जिम्मेवारी को पूरा करता है लेकिन एक डॉक्टर बिना दुश्मन या दोस्त का भेदभाव किये दोनों का इलाज करता है।
संगठनात्मक व्यवहार की समझ का दायरा
(क)सदस्य स्तर पर : सदसयगत स्तर पर संगठनात्मक व्यवहार की समझ हर नुमाइंदे के व्यवहार, नजरिया, व्यावसायिक संतुष्टि और संगठन में आगे बढ़ने की लालसा को समझने की कोशिश करता है।
(ख) समूह स्तर पर : समूह में संगठनात्मक व्यवहार सदस्यों के बीच में लाभ-हानि के हिसाब से तालमेल, मतभेद, सहयोग और समझौता के कारणों को समझने की कोशिश करता है। वह यह भी जानने की कोशिश करता है की सदस्यों के व्यवहार अपने स्वार्थ को पूरा ककरने के लिए था या संगठन के उद्देश्य को हासिल करने के लिए था।
(ग) संगठन में : संगठन में संगठनात्मक व्यवहार की समझ कार्य क्षेत्र में, सकारात्मक माहौल, निष्पक्ष व्यवहार और टीमवर्क की मानसिकता के विकास के लिए होता है।
भाग दो : सदस्य और संगठन सम्बन्ध
(क) सदस्य की संगठन से अपेक्षा
संगठन में कार्य करने के लिए उसे स्वस्थ माहौल मिले
संगठन में, चाहे कोई भी हालत हो, उसका स्थान सुरक्षित रहे
उसे अपनी पसंद का काम मिले और संगठन के व्यवहार में अपनापन हो
सबके साथ निष्पक्ष व्यवाहर हो
ओहदेदार/ बड़े अधिकारी उसकी भूमिका उसकी इज़्ज़त करें
निर्णय लेने की करवाई में उसकी सहभागिता हो
सबके लिए प्रगती और व्यावसायिक उन्नति का सामान अवसर हो
सीनियर्स का समस्याओँ के प्रति तदानुभूति हो
(ख) संगठन की सदस्यों सेअपेक्षा
संगठन के उद्द्व्श्य को हासिल करने में लगा रहे
संगठन के लिए लगातार जी तोड़ मेहनत करता रहे
हर सदस्य नियमानुसार दिए गए कार्य को करे व्यवहार करे
जिसका जैसा कार्य , उसके प्रति वैसा ही व्यवहार
ओहदेदार/ बड़े पदाधिकारी के अच्छे व्यवहार का लाभ उठाने की कोशिश न करे
हर सदस्य संगठन के निर्णेय का निर्विरोध सम्मान करे
कुशलता को पुरस्कार
नुमाइंदों में संगठन और ओहदेदारों के प्रति सम्मान और जवाबदारी की भावना होनी चाहिए
भाग तीन : ज़रूरत
संगठनात्मक व्यवहार की समझ जरुरी है क्योंकि
(क) संगठन के हर नुमाइंदे के स्थान के महत्व को समझने में मदद मिलता है।
(ख़) हर सदस्य के व्यावसायिक संतुष्टी और उन्नति के लिए आवश्यक तत्वों की समझ देता है।
(ग) संगठन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए हर सदस्य की भागीदारी बनाने में मदद करता है।
(घ) दिए गए हर कार्य को बखूबी अंजाम देने की क़ाबलियत बढ़ाता है।
(च) आपसी सहयोग और तालमेल बढ़ाता है और मतभेद काम करता है।
(छ) लगातार अच्छा परिणाम हासिल करने के लियए सभी सदस्यों को प्रेरित करता है।
साराँश
मौजूदा समय में मानव संसाधान प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। नुमाइंदे के व्यवहार को समझने के लिए और हर्र एक नुमाईन्दे की योग्यता और क्षमता उठाने के लिए किसी भी जूनियर लीडर के कारगर होने के लिए निहायत ही ज़रूरी है। लिहाज़ा इस मुद्दे को हासिल करने में , संगठनात्मक व्यवहार की समझ किसी भी जूनियर लडेर क लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।